________________
१३६ : पीयूष घट
पोटिला देव बनकर अनेक बार तेतलि को समझाने आई। परन्तु वह नहीं चेता। देवी शक्ति से प्रभावित कनक ध्वज ने तेतलि का अपमान कर दिया। इस आघात को अमात्य नहीं सह सका। आदर जीवन है, और अनादर मरण ।
अमात्य तेतलि पुत्र ने अब राज्य में न रहने का बलवान् संकल्प कर लिया। चिन्तन करते-करते जाति-स्मरण ज्ञान हुआ। प्रवजित होकर उग्र साधना की।
जीवन का मार्ग सम नहीं, विषम है। कभी चढ़ाव तो कभी ढलाव भी । परन्तु जो सजग होकर चलता है उसे किसी प्रकार का भय नहीं।
-ज्ञातासूत्र
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org