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अमात्य तेतलि पुत्र
धर्म को साधना आत्म-कल्याण के लिए हो करनी चाहिए। भय और लोभ के वशीभूत होकर नहीं । अधर्म से पराङ्मुख और धर्म के अभिमुख होना, कोई आसान काम नहीं है।
तेतलिपुर नगर में कनक-रथ राजा, पद्मावती रानी और तेतलिपुत्र अमात्य रहता था। इसी नगर में मूषिकार दारक एक स्वर्णकार था। उसकी पत्मी भद्रा थी, और पुत्री पोट्टिला थी, जो रूपवती एवं बुद्धिमती थी।
एक बार पोटिटला अपने मकान की छत पर बैठी थी, कि उधर से निकलते अमात्य तेतलि पुत्र की दृष्टि उसके रूप में उलझ गयी। अमात्य ने पोटिला के पिता से उसकी मांग की और वह तैयार हो गया। योग्य वर मिलना बड़ा कठिन है। पोटिला का विवाह तेतलि पुत्र के साथ हो गया ।
राजा कनक-रथ की अपने राज्य में बड़ी ही आसक्ति था। वह अपने जन्मते ही पुत्र का अंगच्छेदन कर देता था, जिससे वह राज्य योग्य न हो। रानी इस करता से व्याकुल थी। पर राजा से कुछ कहने का उसे साहस नहीं होता था।
संयोगवश रानी और पोटिला दोनों एक काल में सगर्भा हई। रानी ने अमात्य को अपना विचार पहले ही व्यक्त कर दिया था। रानी के पुत्र हुआ, और पोटिला के मृत पुत्री ।
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