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१४२ : पीयूष घट
जेल में मेरे पुत्र-घातक को भोजन-पान कराया था । नारी का कोमल-मानस रुष्ट भी जल्दी होता है, और तुष्ट भी जल्दी । धन्य के समझाने पर भद्रा भली-भाँति समझ गयी।
_ कालान्तर में धन्य सार्थवाह ने धर्मघोष मुनि से त्याग-धर्म स्वीकार किया। देव-जन्म के बाद महाविदेह में जन्म लेकर सिद्ध, बुद्ध और मुक्त होगा। विजय चोर अपने कर कर्मो के कारण नरक में उत्पन्न हुआ। ___ आत्मा धन्य सार्थवाह हैं, और शरीर विजय चोर । झान, दर्शन और चारित्र आदि सद्गुण देवदत्त तुल्य हैं । अपना अहित करने वाले शरीर को भी आत्मा सहयोग इसलिए देता है, कि वह उसके विकास में साधन बनकर रहेगा।
-ज्ञातासूत्र/.
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