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वैराशिक रोहगुप्त
मनुष्य को ज्ञान तो सीखना चाहिए। पर अपने प्राप्त ज्ञान का अहंकार कभी न करना चाहिए। अहंकारी का ज्ञान भो अज्ञान ही है।
अन्तरिक्ष नगर में भूतग्रह बाग था। एक बार वहाँ श्रीगुप्त आचार्य पधारे। आचार्य अपने शिष्य परिवार के साथ थे।
उसी अवसर पर वहाँ पर कहीं से एक परिव्राजक भी आया, जो अनेक विद्याओं में प्रवीण था। राज-सभा में जाकर वह बोला___ "राजन् ! या तो आपके राज्य के पण्डित मेरे से शास्त्रार्य करें, या हार मानकर मुझे विजेता मान लें।" राजा का एक भी पण्डित शास्त्रार्थ को तैयार नहीं हुआ। सब के सब पण्डितों ने कहा----
“यहाँ पर श्रीगुप्त आचार्य पधारे हैं । उनका शिष्य रोहगुप्त बड़ा विद्वान् है। वह शास्त्रार्थ कर सकता है। दूसरे किसी की शक्ति नहीं है, इसको जीतने की।"
रोहगुप्त ने आचार्य को बिना पूछे ही अपनी अनुमति दे दी । आचार्य को ज्ञात होने पर उन्होंने कहा
"भिक्षु को इस प्रकार के वितण्डावाद में नहीं पड़ना
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