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१५६ : पीयूष घट
नहीं मान लेते ? घी के एक टपके को सम्पूर्ण घी क्यों नहीं मान लेते ? क्या एक दाने से आपकी भूख शान्त नहीं हो जाती ?"
तिष्यगुप्त को यह बात लग गई । वह इस युक्ति से अपने तर्क के मिथ्यात्व को समझ गया । अपने भ्रान्त विचारों की आलोचना की और भगवान महावीर के सिद्धान्त में फिर से ढ़ आस्था अभिव्यक्त की। सुबह का भूला, शाम को घर लौट
आया ।
प्रत्येक वस्तु अनन्त धर्मात्मक है, उसे एक ही दृष्टिकोण से देखना मिथ्यात्व हैं, और अनेक अपेक्षाओं से समझना अनेकान्त है ।
- उ० अ० ३, नि० गा० १६८ /
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