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भूले-भटके राही : १५५
जीव हो सकता है। चरम प्रदेश भी जीव हो सकता है। यह तो नयवाद की अपेक्षा से कहा गया है।" गुरू ने तर्क रखते हुए कहा___ वत्स, सुदि की प्रतिपदा को भी शुक्ल पक्ष कहते हैं, और पूर्णिमा को भी शुक्ल पक्ष कहते हैं। नैगम नय और निश्चम नय को समझो!"
'मिथ्यात्व का उदय होने पर सत्य भी असत्य जैसा लगने लगता है। तिष्य समझ नहीं सका । गुरू ने उसका परित्याग कर दिया । तिष्यगुप्त अपने मिथ्या विचार का प्रचार करने लगा।
एक बार बिहार करता-करता तिष्यगुप्त अमल कल्पा नगरी में जा पहुँचा। वहाँ उसने अपने विचार का प्रचार किया। श्रोताओं में वहाँ एक मित्रश्री श्रावक भी था।
वह भगवान् महावीर का परम भक्त था। गम्भीर व्यक्ति किसी त्रुटि को सबके सामने कभी नहीं कहता है।
मित्रश्री ने तिष्य को समझाने के अनेक प्रयत्न किए। एक बार तिष्य भिक्षा करता-करता श्रावक के घर भी पहुँच गया। चतुर कभी अवसर को हाथ से नहीं जाने देता है। तिष्य ने गोचरी लेने को अपना पात्र खोला, तो मित्रश्री ने उसमें एक चावल का दाना. एक दाल का दाना, और एक घी का टपका रख दिया।
तिष्य ने कहा-'श्रमण का भी उपहास किया जाता है।" मित्रश्री ने कहा--"यह उपहास नहीं है। आपका सिद्धान्त ही ऐसा है । जीव के एक चरम प्रदेश को ही तो आप जीव मानते हैं न? फिर एक-एक दाने से सम्पूर्ण चावल और सम्पूर्ण दाल क्यों
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