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अभग्न सेन चोर
रसना लोलुप मनुष्य अपने जीवन की ओर नहीं देखता । अपने सुख और स्वाद के लिए वह दूसरों की वेदना का अनुभव नहीं करता ।
पुरिमताल एक नगर था । महाबल वहाँ का राजा था । नगर में एक अण्ड वणिक भी रहता था । वह अण्डों का व्यापार करता था और स्वयं भी अण्डों का भक्षण करता था । अपनो आयुष्य पूरी करके वह नरक में गया ।
नगर के समीप ही पर्वत की कन्दराओं में एक चोर पल्ली थी । विजय चोर सबका नेता था । उसके पास पांच सौ चोरों का दल था। वह क्रूर, निर्दय और लुटेरा था ।
अण्ड वणिक का जीव विजय चोर के पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ । नाम रखा अभग्न सेन । वह अपने पिता से भी अधिक भयंकर और साहसी था । प्रजा के प्राणों की उसे जरा भी परवाह नहीं थी । प्रजा की शिकायतों से तंग आकर राजा ने अभग्न सेन को पकड़ने के लिए अपनी सेना भेजी, पर वह हाथ नहीं आ सका । अन्त में धोखा देकर उसे पकड़ लिया गया । राजा क्रुद्ध था । अतः कठोर दण्ड देने का आदेश दिया
राजमार्ग में बाँधकर और मारते-पीटते उसे ले जा रहे थे ।
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