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सौर्य दत्त
अपनी आवश्यकता की पूर्ति करना मनुष्य का कर्तव्य है। परन्तु दूसरों के विनाश पर अपना विकास करना-महापाप है, जिसका दारुण फल आज नहीं तो कल मिलेगा ही।
सोरीपुर नगर में सौर्यदत्त राजा था। नगर के बाहर ईशान कोण में मच्छीमारों का एक मोहल्ला था। समुद्रदत्त एक मच्छीमार रहता था। उसकी पत्नी का नाम समुद्रदत्ता और पुत्र का सौर्यदत्त था।
भगवान महावीर नगर के बाहर बाग में विराजित थे। इन्द्रभूति गौतम भिक्षा लेकर प्रभु की सेवा में लौट रहे थे। उन्होंने मार्ग में एक करुण दृश्य देखा
एक मनुष्य था। शरीर उसका सूखा जा रहा था। चलतेफिरते और उठते-बैठते हड्डी कड़-कड़ करती थी। गले में मच्छी का काँटा फंसा हुआ था। अत्यन्त वेदना थी । “भंते, यह ऐसा क्यों ?" भगवान् ने कहा___"नन्दीपुर नगर में मित्र राजा था उसके सिरीय रसोइया था। वह अत्यन्त क्रूर और निर्दय था। पशु और पक्षियों का मांस स्वयं भी खाता था, और दूसरों को भी खिलाया करता
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