Book Title: Piyush Ghat
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 183
________________ १७४ : पीयूष घट और मोर आदि का मांस खाने की प्रेरणा करता था। इस पापमय उपदेश के कारण वह मरकर नरक गया वहाँ से वह उम्बर दत्त के रूप में आया है। वह सार्थवह सागर दत्त की पत्नी गंगादत्ता का पुत्र है। यह अपने पाप-कर्म का दारुण फल भोग रहा है। अनन्त काल तक संसार में परिभ्रमण करता रहेगा । अन्त में महाविदेह से सिद्ध होगा।" रोगी की सेवा करना पाप नहीं है । वह तो धर्म है । परन्तु सेवा में जिस विवेक की जरूरत होनी चाहिए, वह धन्वन्तरि में नहीं थी । हिंसा का उपदेश दिया, उसी का यह फल था। -विपाक श्र० १; अ० ७/. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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