________________
१६६ : पीयूष घट
हजारों लोग उसका तमाशा देख रहे थे । गणधर गौतम भी उस मार्ग से भगवान् के चरणों में नगर से बाहर उपवन में जा रहे थे । मार्ग में यह करुण दृश्य देखा । प्रभु चरणों में पहुँचकर अभग्न सेन चोर के विषय में पूछा । भगवान् ने उसका पूर्वभव और उत्तर भवों का वर्णन किया
"अनन्तकाल तक संसार का परिभ्रमण करके शुद्ध अध्यवसाय के कारण वाराणसी नगरी में एक श्रेष्ठी पुत्र होकर संयम ग्रहण करके, अपनी साधना से सिद्ध होगा ।"
-- विपाक श्र० १, अ० ३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org