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नन्दी वर्धन
दण्ड-बल से मानव के मन का सुधार नहीं होता। शिक्षा से ही मनुष्य की मनोवृत्ति को मोड़ दिया जा सकता है। जीवन का सुधार भय से नहीं, प्रेम और सद्भाव से किया जाना चाहिए। ___सिंहपुर नगर में राजा सिंहरथ का राज्य था। दुर्योधन वहाँ का नगर रक्षक था। कर, कठोर और कट स्वभाव का था । थोडे से भी अपराध पर कठोर दण्ड देने वाला था। तांबा, शीशा लेता और तेल गरम करके तथा अश्व, वृषभ और महिष का मूत्र एकत्रित करके वह अपराधी के देह पर डालता था। गरम तेल के कड़ाह में जीवित मनुष्य को डालकर वह तमाशा देखा करता था। जीवन किसी का शाश्वत नहीं होता। वह नगर रक्षक दुर्योधन पाप का अपार भार लेकर मरा और वहाँ से छट्ठी नरक में नारक बना। _वहाँ से निकल कर मथुरा नगरी के राजा श्रीदास की रानी बन्धुश्री की कूख से जन्मा। राजकुमार का नाम नन्दी वर्धन रखा गया। बचपन सुख से बीता। युवराज वनने पर राजा बनने की तीव्र लालसा जाग उठी । भोग-विलास को आग कभी शान्त नहीं होती। ___ नन्दी वर्धन ने चित्र नापित से मिलकर अपने पिता श्रीदास को मारने का षड्यन्त्र रचा, परन्तु उसमें सफलता नहीं मिली।
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