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१६८ : पीयूष घट
कठोर से कठोर सजा देने को कहा । अमात्य के आदेश से उसके अंग भंग किए गए और बाजार से होकर वध्य-भूमि ले जाया जा रहा था।
मार्ग में गणधर गौतम ने यह करुण दृश्य देखा और भगवान् से पूछा। भगवान् ने शकट का पूर्व भव और उत्तर भवों का वर्णन किया
"अनन्त संसार में परिभ्रमण करता-करता अन्त में सिद्ध, बुद्ध और मुक्त होगा।"
-विपाक श्रु० १, अ० ४७
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