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भूले-भटके राही : १६३
माता को उस पर अप्रीति उत्पन्न हो गई। इसलिए उसे कूरड़ी पर फेंक दिया। फिर वापिस ले लिया। इस कारण उसका नाम उज्झित कुमार रखा गया । यौवन में आकर वह उद्धत, स्वच्छन्द और दुवृत्त हो गया। अवारा होकर इधर-उधर घूमता फिरता रहता था। __ नगर में कामध्वजा गणिका थी। सुन्दर, चतुर और मनो मोहिनी थी। उज्झित कुमार उसके स्नेहपाश में बँध गया। मधुलिप्त असिधारा के समान भोग प्रारम्भ में मधुर लगता है। रानी के अस्वस्थ हो जाने पर राजा की दृष्टि भी कामध्वजा पर जाकर टिकी । सुन्दरी और सुरा अपने उपभोक्ता को उन्मत्त कर देती है। राजा ने कामध्वजा पर अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया।
__ एक बार उज्झित कुमार कामध्वजा के यहां पर जा पहुँचा। दोनों एक-दूसरे के स्नेह में आबद्ध थे। राजा ने यह देखा, तो क्रुद्ध होकर आदेश दिया। ____ "इसके कान और नाक काट लो, पैर में बेड़ो पहना दो, दोनों हाथ पीछे बाँध दो और नगर के बीचों-बीच मारते हुए इसे निकालो।" आदेश कठोर था। परन्तु राजा का था। राजा के विरुद्ध बोलने की शक्ति किसमें है ! मनुष्य दूसरे के पाप को देखता है, अपना नहीं।
भगवान् महावीर नगर के बाहर बाग में विराजित थे। गणधर गौतम भिक्षा लेकर लौट रहे थे। मार्ग में जन-समूह से परिवेष्टि उज्झित कुमार की दशा को देखकर, वे गम्भीर हो गए। मार्ग में अनेक प्रश्न उनके विमल मानस पर उमरे आ रहे
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