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आर्य गंगदेव का भ्रम
शुद्ध श्रद्धा का मिलना कठिन है। बिना श्रद्धा के जीवन स्थिर नहीं होता। जो मनुष्य अपनी श्रद्धा को शुद्ध रखता है- वह कभी दुःखी नहीं होता।
उल्लक नदी के तीर पर उल्लक तोर एक नगर था। नदी के दूसरे तीर पर खेटक ग्राम था। नगर में धनगुप्त आचार्य का वर्षावास था। आचार्य का शिष्य गंगदेव अपने निष्य परिवार के साथ खेटक ग्राम में था।
एक बार शरत्काल में वह गुरु को वन्दन करने जा रहा था। मार्ग में नदो पड़ी। वह नदी को पार कर रहा था। ऊपर सूर्य तप रहा था, और नीचे शीतल जल । उसके मन में विचार आया__"भगवान् का कथन है, कि एक समय में दो क्रियाओं का वेदन नहीं होता है। परन्तु यह तो प्रत्यक्ष है, कि मैं एक साथ ही सरदी और गरमी का वेदन कर रहा हूँ।" ____गुरु की सेवा में पहुँच कर उसने अपने विचार को गुरु के सामने रखा । गुरु ने कहा
"तुम्हारा यह विचार सत्य नहीं है। 'सुख में उपयोग होने पर दुःख नहीं, और दुःख में उपयोग होने पर सुख नहीं।'
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