________________
भूले-भटके राही : १५१ चाहिए।" गुरु के इन्कार करने पर भी रोहगुप्त शास्त्रार्थ करने के लिए राज-सभा में गया।
परिव्राजक ने अपनी विद्या से एक बिच्छू बनाया। रोह ने अपनो विद्या से मयूर बना दिया। बिच्छू भाग गया। फिर परिव्राजक ने मूषक बनाया, तो रोह ने बिलाव बना दिया। परिव्राजक ने हरिण बनाया, तो रोहगुप्त ने सिंह बना दिया। किसी भी प्रकार रोह ने परिव्राजक को जीतने नहीं दिया । आखिर हारा हुआ मनुष्य रोष करने लगता है।
परिव्राजक ने सोचा-रोहगप्त बड़ा विद्वान् है। इसको जीतना बड़ा कठिन है। तब परिव्राजक ने चातुर्य से काम लिया। उसने रोह से पूछा
"राशि दो होती हैं न ?" अब यदि रोहगुप्त इस सत्य को स्वीकार करता है, तो परिव्राजक को बात का समर्थन होता है। यदि इन्कार करता है, तो अपने सिद्धान्त का अपलाप होता है। विवाद में जीतना हो मुख्य ध्येय होता है। रोहगप्त ने कहा----
"राशि दो नहीं, तीन होती हैं जीव राशि, अजीव राशि और नो जीव नो अजीव राशि।" अन्त में परिव्राजक हार गया और रोहगप्त जीत गया। __रोहगुप्त की प्रशंसा चारों ओर फैल गई। परन्तु आचार्य ने कहा
“तूने सिद्धान्त के विरुद्ध मत को स्थापना की है, यह ठीक नहीं है।" रोह को भी अपनी बात का आग्रह हो गया था। समझाने पर भी वह समझा नहीं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org