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१३२ : पीयूष घट
श्रेष्ठी कन्या अपनी सहेलियों के साथ बाग में आकर खेलने लगी। सहसा मुनि को ध्यानस्थ देखा । मुनि के रूप, योवन और सौन्दर्य पर वह मुग्ध हो गयो । वह खेल को भूल गयी, और मुनि की ओर अपलक देखती रही।
मुनि आत्मा का ध्यान कर रहा था. और श्रेष्ठी कुमारी मुनि के सौन्दर्य का ध्यान करने लगी। उसने अपने मन में संकल्प कर लिया___ "विवाह मेरा यदि होगा, तो इस मुनि के साथ । अन्यथा, मैं कुमारी होकर ही रहूंगी।" _संस्कार प्रबल होते हैं। जीवन क्या है ? संस्कार-संचय । मादक मुनि संस्कार-वश श्रेष्ठी कुमारी के स्नेह-पाश में आबद्ध हो गया। श्रेष्ठी कुमारी अपने मनोरथ की पूर्ति पर प्रसन्न थी। मनोरथ की पूर्ति से जीवन हरा-भरा हो जाता है। संसार-सागर की चंचल तरंगों पर-दोनों प्रवाहित होने लगे। ___ कालान्तर में आद्रक को पुत्र-रत्न की प्राप्ति हुई । वह फिर से साधना मार्ग की ओर बढ़ने के लिए प्रयत्न करने लगा। परन्तु पुत्र-प्रेम ने बारह वर्षों के लिए बांध कर संसार में रखा।
एक बार श्रीमती आद्रक चरखा लेकर कातने लगीं । खेलकर आए पुत्र ने पूछा-'अम्ब, आज यह क्या कर रही हो?" ____ "वत्स, तेरे पिता मुझे और तुझे छोड़कर जाने को तैयार हैं । पेट भरने के लिए सूत कात रही हूँ। यह गरीबों की निर्दोष आजीविका है-वत्स !" श्रीमती ने दुलार भरे आद्र-कण्ठ से कहा। ___ "अम्ब, तुम चिन्ता मत करो ! मैं अभी उपाय कर देता हूँ, जिससे पिताजी नहीं जा सकेंगे।'' उसने कच्चा सूत लेकर
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