________________
भूले-भटके राही : १३३ प्रसुप्त पिता के पैरों में बारह आँटे लगा दिए। पुत्र-प्रेम के वशीभूत होकर आद्रक बारह वर्षों तक फिर संसार में संसक्त रहा।
वासना के संघर्ष में पराजित आद्रक फिर से अपने विकारों से युद्ध करने को तैयार हो गया। जिस मार्ग से हटा था, फिर उस पर दृढ़ता से बढ़ने लगा। __ एक बार वह वसन्तपुर से राजगृही जा रहा था। मार्ग में गोशालक से वाद किया, तापसों से वाद किया। अपने पैने तों से उन्हें परास्त किया। वह राजगृही जा पहुंचा। अभय कुमार ने आद्रक मुनि को बहुमानपूर्वक वन्दन किया, नमस्कार किया।
-सूत्रकृतांग चूणि.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org