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१०० : पीयूप घट
"तो, क्या मैं वहाँ नहीं चल सकता! क्या मुझे दर्शन का अधिकार नहीं है ?" अजुन ने आशा भरी आँखों से सुदर्शन को ओर देखा। ___ "क्यों नहीं, अवश्य चल सकते हो ! वहाँ पर किसी का प्रवेश निषिद्ध नहीं है । अपावन भी वहाँ पावन हो जाता है।" अर्जुन का मन बल्लियों उछल पड़ा, वह कहने लगा :
"अच्छा, बहत अच्छा ! मैं अभवन है, अब पावन बनने का संकल्प है, मेरा।" अर्जुन सुदर्शन के साथ चल पड़ा।
भगवान् ने अजुन से कहा : “अर्जुन, सावधान हो जा ! मनुष्य जन्म को सफल कर ले ! अतीत तो बीत चुका है अब भविष्य तेरे हाथ में है ! धर्म में वह शक्ति है, जिससे कल का अपावन आज पावन बन सकता है। विश्वास बदलते ही विश्व बदल जाता है, वत्स !"
अजन मालाकार भगवान का शिष्य हो गया। आगार से अणगार बन गया। वह जीवन का नया मोड़ लेकर नयी दिशा में बढ़ने लगा।
भक्त-पान के लिए अर्जुन भिक्षु, नगर में जाता। पर वहां उसे मिलते-पत्थर, डंडों की मार, चांटों की चोट और अपशब्द के तीखे वाण-जो सीधे मन से टकराते ! परन्तु अजन मुनि, शान्त और धीर था। मन में सोचता : ___"यह सब तो मेरा अपना किया कर्म है। मेरी करता से ये सभी पीड़ित थे। मैंने कितनी हिंसा की थी !'' अपने अतीत को याद करके अर्जुन मुनि का मानस ग्लानि से भर-भर जाता था।
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