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क्रोध पर क्षमा के गीत !
गजसुकुमाल का गुलाबी बचपन महकने लगा, देवकी के महल में ही नहीं, द्वारिका नगरी के घर-घर में नर और नारी जब कहीं पर भी मिलकर बैठते, वहीं पर गजसुकुमाल के यौवन की, रूप की और लावण्य की चर्चा करते थे । वह मनुष्य नहीं है, देव | क्या रूप है ! क्या यौवन है ! क्या विलास है ! क्या देह कान्ति है ! भला, किसी मनुष्य में इस अद्भुत और अनुपम रूप- सौन्दर्य की सम्भावना हो सकती है ? नहीं नहीं, कदापि नहीं । गजसुकुमाल सुन्दर है, कुसुम से भी सुकोमल है । "न भूतो न भविष्यति ।"
देवकी का अमित वात्सल्य, वसुदेव का अपार नेह, और कृष्ण का अपरिमित प्रेम गजसुकुमाल को महलों से और विशेषतः द्वारिका से बाहर नहीं जाने देता था । कहीं कोई वैराग्य का निमित्त गजसुकुमाल के दृष्टि पथ पर न आ जाए - यही शंका सबके मन में चक्कर काट रही थी । क्योंकि जन्म से पूर्व ही गजसुकुमाल के सम्बन्ध में एक देव की भविष्य वाणी थी : "राजकुमार ज्यों ही तरुणाई के मादक मोड़ पर जाएगा, त्यों ही वह भिक्षु बन जायेगा । वह किसी भी मूल्य पर संसार में न रहेगा ।"
भगवान् नेमिनाथ सहस्राम्र वन में पधार चुके थे । नगर में और महल में एक उमंग और उत्साह भर गया था । देवकी
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