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कटु है यह संसार' !
काकन्दी एक सुन्दर नगरी थी, जिसमें जीवन को सुखमय बनाने की समस्त सामग्री उपलब्ध थी। जितशत्र राजा का शासन वहाँ सबको प्रियतर था। सार्थवाही भद्रा इसी काकन्दी की रहने वाली थी। भद्रा बुद्धिमती, सुन्दरी तथा व्यवहार-दक्षा थी। उसके पास अपार धन-राशि थी।
पति का अभाव होने पर भी पति की विरासत के रूप में भद्रा की गोद में एक सुन्दर, सुकोमल एवं प्रियदर्शनीय आत्मज था-धन्यकुमार ! भद्रा का यह प्राण था और था जीवित धन! संसार में माता के लिए पुत्र से बढ़ कर प्रिय एवं इष्ट अन्य कोई वस्तु नहीं है। पुत्र भले ही कुपुत्र हो जाये, परन्तु माता कभी कुमाता नहीं हो सकती। भद्रा का सर्वस्व धन्यकुमार था। उसका पालन-पोषण और शिक्षण-यही भद्रा की साधना थी, और यही थी भद्रा की मातृ-हृदय सुलभ तपस्या। मात-हृदय की सहज माँग है : "अपने जीवन के स्वस्थ क्षणों में अपनी पुत्र वधू का मुख देखना।" ___सार्थवाही भद्रा भाग्यशालिनी थी। उसने एक-दो नहीं, बत्तीस-बत्तीस पुत्र-वधुओं का सुन्दर मुख देखा था। उनकी सेवा और भक्ति से वह सत्कारित और सम्मानित भी बनी । धन्यकुमार तो अपनी माता को पूजा कहता ही था। नगर के अन्य लोग भी भद्रा को "माता" इस स्नेह निमज्जित शब्द से सम्बोधित
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