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संन्यासी का द्वन्द : १२३
मन्त्री ने नम्र स्वर में कहा :
"यह सब आपकी शान्ति के लिए है। रानियाँ स्वयं अपने हाधों से लेप के लिए चन्दन घिस रही हैं । अतः हाथ की चूड़ियों का यह शब्द है।"
नमि ने विचार किया :
"कभी यह शब्द कितना प्रिय लगता था ! और आज कितना अप्रिय एवं कटु लग रहा है !!
रानियों ने अपने हाथों में सोभाग्य सूचक एक-एक चूड़ी रखकर शेष निकाल दी, और अपना कार्य चालू रखा। अब महल में मुखरता का स्थान नीरवता ने ले लिया था । नमि ने उत्सुक होकर पूछा :
क्या चन्दन घिसा जा चुका ?" "नहीं, अभी घिसा जा रहा है।" मन्त्री ने कहा ।
"तो अब उनका शब्द क्यों नहीं होता है।" राजा का पुनः प्रश्न था।
मन्त्री ने स्थिति स्पष्ट करते हुए रानियों से कहा : “सौभाग्य सूचक एक एक चूडी हाथों में रखकर शेष सब चूड़ियाँ निकाल दी हैं। अब अकेली चूड़ी खनके तो किसके साथ खनके ?" ___ नमि का प्रसुप्त मानस झकझोर उठा ! उसने जागरण को एक अंगड़ाई ली और फिर गहरे विचार सागर में डूब गया। अन्त में वह इस मूल्यवान मोती को पा गया : ___ "वह कोलाहल, यह अशान्ति, सब अनेकत्व में हैं, एकत्व में तो शान्ति और आनन्द ही है।"
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