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१२४ : पीयूष घट
विचार धारा बदली, एकत्व की साधना करने की भावना बलवती हुई। सोचा “यदि मेरी व्याधि शान्त हो जाए, तो मैं कल ही भिक्षु बन जाऊँगा।"
मनुष्य के संकल्प में महान् बल होता है। नमि का तीव्र दाह ज्वर उपशान्त हो गया। चिन्तन करते करते नमि को पूर्वजन्म की स्मृति सजग हो उठी।
प्रभात होते ही मिथिला जनपद के विशाल वैभव का परि. त्याग कर श्रमण बन गए। एकान्त वन-भूमि में आत्म-साधना का महा प्रवाह प्रवाहित होने लगा। इन्द्र ने ब्राह्मण रूप से प्रत्यक्ष में आकर नमि से ज्ञान-चर्चा की और उसके त्याग वैराग्य की परीक्षा ली, नमि सफल हो गया !
उ० अ०६/.
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