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प्रकाश से अंधकार में
प्रकाश मनुष्य को सहज ही प्रिय होता है, और अंधकार अप्रिय होता है। प्रकाश जीवन है, और अंधकार मृत्यु है ।
एक भूगर्भ शास्त्री किसी पर्वत की अंधकार पूर्ण गुफा में धातुशोध करने के लिए गयो। अपने साथ तैल पूर्ण दीपक भी वह प्रकाश के लिए ले गया था। अन्यथा उस घोर अंधेरे में उसे मार्ग ही नहीं मिलता, और धातुओं का अनुसन्धान करना भी असम्भव हो जाता।
वह दीपक के प्रकाश में पर्वत की गहन गुफा में अन्दर ही अन्दर बढ़ता गया। दुर्भाग्यवश उसे एक पत्थर की ठोकर लगो, दीपक हाथ से दूर जाकर पड़ा। चारों ओर अंधकार हो गया। मार्ग भी अन्धकारमय हो गया। मार्ग भी अब नहीं सूझता था। घोर अंधकार में वह इधर-उधर भटकता फिरता रहा । अंधकार मनुष्य के लिए अभिशाप है। ___ एक सर्प पर उसका पैर पड़ा, सर्प विषधर था । वह भूगर्भवेत्ता वहीं मर गया । उसके सब संकल्प धरे ही रह गए। ___ संसार भी एक पर्वत है। मनुष्य भव गुफा है। सम्यक्त्व दीपक है। शंकाकांक्षा की ठोकर से वह बुझ जाता है, जिससे मिथ्यात्व का अंधकार सर्वत्र व्याप्त हो जाता है। फिर विषय का विषधर जीवन को डस लेता है।
उत्तरा०, अ० ४, गा० ५..
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