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संन्यासी का द्वन्द : १२७
भिखारी कपिल जीवन का सम्राट हो गया । वह भिक्षु बन गया। जिसने अपनी तृष्णा के महागर्त को सन्तोष से भर दिया उसका आदर कौन नहीं करता ? राजा ने श्रमण कपिल को नमस्कार किया ।
बन्दी जीवन बिताने वाले पाँच सौ चोरों को प्रतिबोध देख कर कपिल ने उनके जीवन में भी त्याग की ज्योति जला दी । छह मास की कठोर साधना से केवल ज्ञान का महाप्रकाश मिल गया । कपिल केवली भगवान् बन गया ।
लोभ, तृष्णा, कामना और वासना को जीतने वाला साधक प्रकाश के महापथ पर चलता है और दूसरों को चलने की भी प्रेरणा देता है ।
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उ० अ० ८, नि० गा० २५६ /
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