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भोग से योग की ओर
मिथिला नगरी में राजा नमि राज्य करता था। वह भोगों में संसक्त था। भोगों से हटकर योग पर कभी उसका ध्यान ही नहीं जाता था। दिन-रात भोग-विलास के मादक वातावरण में रहकर नमि अपने आपको भूल-सा गया था। भोगों की चकाचौंध मनुष्य को बेभान कर डालती है। परन्तु अन्ततः भोग का परिणाम रोग होता है ।
नमि के देह में दाह ज्वर हो गया। दारुण वेदना से वह अत्यन्त अभिभूत रहने लगा।
एक वैद्य ने बताया, कि "बावना चन्दन का लेप निरन्तर करते रहना चाहिए।"
नमि पर रानियों का अत्यन्त अनुराग था। वैद्य के कहने पर वे स्वयं अपने हाथों से चन्दन घिसने लगीं। एक साथ चन्दन घिसने से हाथ की चूड़ियों से होने वाला शब्द भी राजा नमि को सहन न हो सका। वेदना के क्षणों में प्रिय भो अप्रिय हो जाता है।
राजा ने मन्त्री से कहा :
"यह खन-खनाहट का शब्द मुझे सहन नहीं हो रहा है। यह शब्द कहाँ से हो रहा है, और क्यों हो रहा है ?
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