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११६ : पीयूष घट
राजा श्रेणिक तुरन्त धन्य अणगार के दर्शन को, वन्दन को गया । गुणी का आदर न करना भी जीवन का एक बड़ा दोष माना जाता है | भगवान् के श्रीमुख से की जाने वाली अपनी प्रशंसा को श्रेणिक से सुनकर भी धन्य अणगार का मन हर्षित और पुलकित नहीं हुआ । प्रशंसा और निन्दा, मान और अपमान, आदर और दुत्कार के झंझावातों से धन्य अणगार का मन अप्रभावित हो चुका था । साधक जीवन के लिए प्रशंसा और सम्मान फिसलन भूमि है, जहां फिसलने का हर समय खतरा बना रहता है ।
अन्त में, अनुभवी स्थविरों की देखरेख में धन्य अणगार ने संलेखना को । नवमास का संयम - पर्याय और एक मास की संलेखना करने के बाद धन्य अणगार देह त्याग कर सर्वार्थ सिद्ध विमान में जा पहुँचा । वहाँ से महाविदेह होकर सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हो गया ।
- अनुत्तरोपपातिक वर्ग, ३, अ०१/०
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