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आत्मा का अपूर्व धन !
ढंढकुमार महाराज कृष्ण का पुत्र था। वह भगवान् नेमिनाथ की कल्याणी वाणी सुनकर भोग से विमुख हो गया और योग की ओर बढ़ चला था । वह भगवान का शिष्य बन गया। अल्प-काल में ही उग्र तप और कठोर साधना से ढंढ मुनि भगवान् के शिष्य-परिवार में सबसे प्रथम हो गया।
एक बार कृष्ण ने भगवान से पूछा : "भते, आपके १८ हजार शिष्यों में सबसे उग्र तपस्वी, सबसे कठोर साधक और सबसे अधिक श्रेष्ठ चारित्रवान कौन है ?"
सर्वज्ञ यथार्थ वक्ता होता है। भगवान् ने कहा : "ढंढ मुनि !" भगवान् का संक्षिप्त उत्तर था।
कृष्ण ने शान्त भाव से पूछा : "भंते, अल्पकाल में ही ढंढ मुनि ने कौन-सी कठोर साधना की है ?"
भगवान् ने कहा : "कृष्ण, उसने अलाभ परीषह को जोत लिया है।"
"द्वारिका नगरी में जब वह भिक्षा को निकलता तो भिक्षा नहीं मिलती। अन्तराय कर्म का प्रबल उदय होने के कारण उसे अलाभ ही अलाभ होता और यदि कहीं लाभ भी होता तो इसलिए कि यह राजकुमार है।
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