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संन्यासी का द्वन्द : ६६
भगवान् महावीर के पधारने की सूचना राजा को और नगर की जनता को भी लगी। परन्तु किसी का साहस नहीं हो सका । जीवन का मोह सबको अवरुद्ध किए हुए था। ___ मेघ को गर्जना होने पर मयूर नाचता है, तो कमल की सुरभि पर भ्रमर गुंजार करता है, तब भगवान् के आने पर भक्त, घर की दीवारों में कैसे बन्द रह सकता है! माता-पिता आदि सभी के समझाने पर भी सुदर्शन प्रभु के दर्शन-वन्दन को चल ही पड़ा। जीवन की अपेक्षा सुदर्शन को प्रभु के दर्शन अधिक प्रिय थे । अर्जुन का उसे जरा भी भय नहीं था।
अभय होकर सुदर्शन धीर, मन्द गति से बढ़ रहा था। सहसा काल बनकर अजुन सामने आ पहुँचा था! सुदर्शन ने मन में प्रतिज्ञा की : ___ "यदि इस संकट से बच गया, तो प्रभु के दर्शन करूंगा नहीं बच सका, तो सागारी संथारा है !"
अर्जुन क्रोध में भरकर आया था। परन्त सुदर्शन के सामने वह निस्तेज हो गया। शरीर से यक्ष के निकल जाने पर वह निःसत्व होकर धरणीतल पर गिर पड़ा। भौतिक बल पर अध्यात्म बल की यही महान् विजय थी! कर और बलवान् अर्जुन सुदर्शन के सामने दीन और निर्बल बनकर पड़ा हुआ था।
अर्जुन ने सुदर्शन की ओर शान्त नेत्रों से देखते हुए कहा : "देवानुप्रिय, तुम कौन हो ! कहाँ पर जाना चाहते हो?"
"मेरा नाम सुदर्शन है। भगवान महावीर का मैं भक्त हूँ। प्रभु के दर्शन को जा रहा हूँ !" सुदर्शन ने मधुर स्वर में कहा था तभी!
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