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१०२ : पीयूष घट
थावच्चा पुत्र अपने शिष्यों सहित विहार करते-करते सेलकपुर नगर में पहुँचे । वहाँ पर सुभूमि भाग उद्यान में विराजित हुए । राजा सेलक, रानी पद्मावती, युवराज मण्डूक और पन्थक प्रभति ५०० मन्त्री तथा नगर के लोग दर्शन करने एवं धर्म-प्रवचन सुनने को आए। राजा सेलक ने श्रावक व्रत अंगी. कार किए। कालान्तर में महामुनि थावच्चा पुत्र भी वहाँ से विहार कर गए।
उसी युग में एक परिव्राजक था, जिसका नाम शुक था। वह वेद विद्या में पारंगत था और सांख्य दर्शन का मर्मज्ञ ! एक बार परिव्राजक शुक, घूमता-घूमता सौगन्धिका नगरी में आया, वहाँ एक विख्यात सेठ था-सुदर्शन । श्रेष्ठी सुदर्शन ने परिव्राजक शुक से दस धर्म मूलक, पांच यम, पाँच नियम और दान-धर्म आदि का उपदेश सुना और उसके मत को स्वीकार कर लिया। नगर के दूसरे प्रजा जनों ने भी परिव्राजक के धर्म को स्वीकार किया था।
कालान्तर में विहार करते-करते अणगार थावच्चा पुत्र भी वहाँ पधारे और नीलाशोक बाग में विराजित हुए । नगर के लोगों ने उपदेश सुना । श्रेष्ठी सुदर्शन भी अत्यन्त प्रभावित हुआ और उसने थावच्चा पुत्र से श्रावक व्रत अंगीकार कर लिए।
परिव्राजक शुक को यह ज्ञात हुआ, तो वह सुदर्शन के पास गया। परन्तु सुदर्शन ने उसके प्रति विशेष भक्ति प्रदर्शित नहीं की। अपने हजार तापसों को साथ लेकर वह थावच्चा पुत्र अणगार के पास नीलाशोक बाग में गया, विचार चर्चा की। अन्त में वह भी थावच्चा पुत्र का शिष्य हो गया। श्रेष्ठी सुदर्शन को यह देखकर बड़ी प्रसन्नता हुई। थावच्चा ने अपने
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