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६८ : पीयूष घट
उस गोष्ठी के छह पुरुष आज इधर आ निकले। उन्होंने -बन्धुमती को यक्षायतन में प्रवेश करते देखा । मन की प्रसुप्त वासना जाग उठो | अर्जुन को लोह श्रृंखला से बांधकर वे छह पुरुष बन्धुमती के साथ अनार्य कर्म करने लगे ।
पुरुष चाहे कितना हो बलहीन एवं अशक्त क्यों न हो वह अपने सामने ही अपनी पत्नी का अपमान नहीं सह सकता । पुरुष में पुरुषत्व नहीं, यह उस पर वज्र प्रहार की सी चोट होती है । नारी में सौन्दर्य नहीं, यह उसके स्वाभिमान पर खुला आक्रमण ! उन छः व्यक्तियों का कर्म अर्जुन के पुरुषत्व को चुनौती थी !
यक्षायतन में अपनी और अपनी पत्नी की यह दुर्दशा देखकर अर्जुन का मन ग्लानि से भर गया । वह यक्ष को भर्त्सना करते हुए कहने लगा ।
"क्या तेरी भक्ति का यही फल है ! क्या हम तेरी पूजा इसीलिए करते हैं ?"
अर्जुन के इस उपालम्भ से यक्ष ने उसके शरीर में प्रवेश किया । अर्जुन के समस्त बन्धन टूट गए और उसने अपने हाथ में लोह मुद्गर लेकर छहों पुरुषों को और अपनी पत्नी बन्धुमती को मार डाला । लगातार ५ महीने और १३ दिनों तक अर्जुन का यही क्रम रहा। इसी बीच उसने ११४१ मनुष्यों का घात किया । वह अपने आप में बेभान था और हिंसा करना उसका नित्य कर्म बन गया था ।
राजा श्रेणिक के आदेश से नगरी के द्वार बन्द हो गए । आघोषणा कर दी गई, कि - " जिसे अपना जीवन प्रिय हो, वह नगरी के बाहर न निकले !"
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