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संन्यासी का द्वन्द : ६७
रहे उसी की चित्रशाला में चातुर्मास किया। उसने बहुत हावभाव पूर्वक भोगों के लिए मनि से प्रार्थना की किन्तु वे किंचित मात्र भी चलित न हुए। ऐसे मुनि के लिए गुरु महाराज ने 'दुष्कर-दुष्कर' शब्द का प्रयोग किया था, वह युक्त था ! उचित था !!"
-नन्दी गा० ७६/७
अर्जुन की क्षमा साधना !
मगध देश की राजधानी के बाहर सुन्दर फूलों का एक बागा था, जिसमें सुरभित और रंग-बिरंगे फूल हुआ करते थे। अजुन मालाकार का यह बगीचा था। उसकी आजोविका का यही एक साधन था। बन्धुमती उसकी पत्नी थी! वह सुन्दर और रूपवती थी। उसके अंग-अंग से यौवन फूट रहा था। पुलकित यौवन युक्त रूपवती को पाकर अर्जुन परम प्रमुदित था।
बाग के मध्य भाग में यक्ष का एक देवालय था। अर्जुन मालाकार के पूर्वज इसकी आराधना करते चले आ रहे थे। अर्जुन और बन्धुमती भी यक्ष की पूजा करते थे। अर्जुन अभी बाग में फूल चुन रहा था और बन्धुमती यक्षायतन में पूजा करने को आई।
राजगृही में ललिता नाम की एक गोष्ठी थी. जिसमें स्वच्छन्द, आवारा, कर और व्यभिचारी लोग मिले हुए थे।
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