________________
८२ : पीयूष घट
शासन स्वीकार किया । प्रियदर्शना के चले जाने पर जमाली को बहुत धक्का लगा । वह श्रावस्ती से चम्पा पहुँचा, भगवान् के समीप जाकर वह बोला : “देवानुप्रिय, जब मैं आपके पास से गया था, तब मैं छद्मस्थ था । अत्र सर्वज्ञ हैं, केवली हूँ और जिन हूँ ।"
गणधर गौतम ने जो भगवान् के पास ही बैठे थे, जमाली से प्रश्न कर दिया : " यदि आप सर्वज्ञ हैं, तो बताइए कि यह लोक शाश्वत है, या अशाश्वत है ? जीव शाश्वत है, या अशाश्वत है ?" जमाली प्रश्नकर्त्ता की ज्ञान-गरिमा के सामने हतप्रभ हो गए, कुछ उत्तर न दे सके ।
भगवान् शान्त स्वर में बोले : "जमालो, तुम एक छोटे-से प्रश्न का भी समाधान नहीं दे सके; जबकि मेरा एक छोटे-सेछोटा शिष्य भी इसका उत्तर दे सकता है !"
जमाली निरुत्तर होकर वहाँ से लौट गए। बहुत वर्षों तक कठोर चारित्र का पालन किया । परन्तु जन साधारण में अपने मिथ्या विचारों का प्रचार करने से श्रद्धा भ्रष्ट हो गई थी । अतः उनका अन्तिम जीवन सुधर नहीं सका ।
- उत्तरा० अ० ३, नि० गा० १६७ /
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org