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६० : पीयूष घट
पारणे का दिन था। भगवान् की आज्ञा से गणधर गौतम स्वयं गोचरी को चल पड़े। स्वावलम्बन भिक्षु जीवन में आवश्यक है । बाणिज्यग्राम नगर के घर-घर में पावन चरण पड़ने लगे। जिधर भी डग बढ़ जाते, जिधर भी दृष्टि पड़ जाती, दाता बाग-बाग होकर निहाल हो जाता । भिक्षु का पात्र मंगलमय होता है, किसी भाग्यशाली के घर ही वह पहुँचता है। भिक्षा लेकर इन्द्रभूति गौतम प्रभु की सेवा में वापिस लौट रहे थे। धीर, गम्भीर और मन्थर गति के साथ ।
जन-जन के मुख से जब गौतम ने, श्रांवक-आनन्द की तपस्या, साधना और आराधना का श्रद्धामय यशोगान सुना-तो आनन्द से मिलने की अपने मानस-कोष में चिर संचित भावना का वे विरोध नहीं कर सके । आनन्द के पास गौतम स्वयं जा पहुँचे। ____ गणधर गौतम को आया जानकर आनन्द के मन में अपार हर्ष लहराने लगा। शरीर तपस्या से कृश और अशक्त हो चुका था। स्वागत-सत्कार के लिए उठने की प्रबल भावना होने पर भी वह उठ नहीं सका । क्षीण स्वर में बोला : "भंले, उठने की भावना होते हुए भी उठ नहीं सकता। मेरा सविनय सभक्ति वन्दन स्वीकार करें।"
गौतम ने वन्दन स्वीकार किया। आनन्द ने पूछा - "भंते ! गृहस्थ को अवधि ज्ञान हो सकता
"हाँ, अवश्य हो सकता है" गणधर गौतम ने कहा।
"तो, भंते, आपकी कृपा से वह मुझे मिला है। पूर्व में, पश्चिम में और दक्षिण में लवण समुद्र में पांच-पांच-सौ योजन
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