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१२ : पीयूष घट
१४ हजार श्रमणों के अधिनायक गणधर गौतम में कितना महान् विनम्र भाव था ! गौतम के प्रबुद्ध मन में सत्य का कितना आदर था! कितनी सरलता थी !! कितनी नम्रता थी !!! साधक अपनी भूल को मान-अपमान के गज से नहीं नापता है।
गौतम के मन में सन्देह था, पर महावीर की वाणी ने उसका समाधान कर दिया, पिपासु की प्यास बुझ गई। इस तरह गणधर गौतम और श्रावक आनन्द के जीवन का यह पावन प्रसंग आज के अभिमानी युग के लिए एक सुन्दर सन्देश है।
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