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८० : पीयूष घट
कालान्तर में जमाली अनगार विहार करते-करते श्रावस्ती नगरी पहुँचे । नगरी के बाहर तिन्दुक बाग में ठहर गए । मनुष्य का स्वास्थ्य उसके विचारों के साथ, उनके भोजन से भी प्रभावित होता है । रूखा-सूखा भोजन मिलने से उसके शरीर में रोग पैदा हो गया। देह की शक्ति इतनी क्षीण हो चुकी थी कि वे खड़े और बैठे भी नहीं रह सकते थे। देह-बल के बिना अध्यात्म साधना भी रुक जाती है। अपने शिष्यों को जमाली ने आदेश दिया: ___"मैं बैठने में अशक्त हूँ, लेटना चाहता हूँ, मेरी शय्या तैयार कर दो।" ___ शिष्य गुरु के आदेश के पालन में जुट गए। अशक्ति मनुष्य को अधीर बना देती है। एक क्षण के बाद ही जमाली ने पूछा : "शय्या कर दी क्या ?" शिष्यों ने कहा : "अभी नहीं, अभी तैयार की जा रही है।"
जमाली शिष्यों के इस उत्तर से विचारों के गहरे सागर में उतरते गए उनके मानस में विचारों का तूफान उमड़ पड़ा
भगवान महावीर का कथन है : “जो कार्य प्रारम्भ हो चुका है, उसे किया ही समझना चाहिए। परन्तु यह तो प्रत्यक्ष में ही लोक विरुद्ध है।"
जमाली को अपनी सूझ पर गर्व हो आया। शिष्यों से कहा :
"भगवान् महावीर जो कहते हैं, वह ठीक नहीं है। मैं जो कहता हूँ, वह ठीक है। कार्य को समाप्ति-पूर्णता पर ही उसे 'कृत' किया हुआ कहा जा सकता है, आरम्भ करते ही 'कृत' कहना गलत है।"
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