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अमात्य की बात !
कोई वस्तु न अपने आप में भली है, और न बुरी। जैसा निमित्त मिलता है; वस्तु वैसी ही बन जाती है । वस्तु मात्र परिणमनशील है।
चम्पा नगरी में जितशत्रु राजा राज्य करता था। धारिणी रानी थी, अदीनशत्र राजकुमार था। सुबद्धि उसके अमात्य का नाम था। वह एक विचारशील श्रावक था और वस्तु के स्वरूप को जानता था।
नगरी के वाहर एक खाई थी, जिसमें गन्दा पानी भरा था। राजा एक दिन उधर से निकला और उस सड़े जल को देखकर सुबुद्धि से बोला : “यह पानी कितना गन्दा है ?" ।
अमात्य सूबद्धि ने विनीत भाव से कहा : "राजन ! यह तो वस्तु का स्वभाव है, कि उसमें परिणमन होता ही रहता है। जो आज अच्छी है, वह कल बुरी हो सकती है, और जो आज बरी है, वह कल अच्छी बन सकती है।" __ राजा ने यह बात सुनकर फिर कहा :
"यह तुम्हारा भ्रम है । जो अच्छा है, वह अच्छा ही रहेगा, और जो बुरा है, वह बुरा ही रहेगा। क्या यह गन्दा पानी भी कभी सुवासित हो सकता है ?"
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