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निन्दिया जागी ! निन्दिया लगी !!
मनुष्य कर भी है, दयाशील भी है। मनुष्य कठोर भी है, मृदु भी है। मनुष्य में देव से दानव बनने की शक्ति है, तो दानव से वह देव भी बन सकता है। हृदय परिवर्तन हो जाने पर वह अपने को जैसा चाहे बना सकता है ! __ भरत-क्षेत्र के केकय देश के आधे भाग में श्वेताम्बिका नगरी थी। नगरी से बाहर उत्तर-पूर्व के कोण में मगबन उद्यान था-- सुन्दर, सुरभित और सुखद । नगरी सुन्दर, और वहाँ के लोग समद्ध थे।
राजा परदेशी वहाँ पर राज्य करता था। रानी का नाम सूर्यकान्ता, और राजकुमार सूर्यकान्त था। परदेशी राजा कर, कठोर, निर्दय और भयंकर था। धर्म क्या है ? यह कभी उसने जानने का प्रयत्न ही नहीं किया। प्रजाजन सदा उससे भयभीत रहते थे। पर-दुःख को वह अपना मनो-विनोद समझता था। "देह से भिन्न जीव नहीं है।" यह उसका दृष्टिकोण बन गया था । अभी तक कोई ऐसा समर्थ पुरुष उसे नहीं मिला था, जो परदेशी राजा के दृष्टिकोण को बदल सके। प्रजाजन परदेशी को साक्षात् यम और काल समझते थे।
कुणाल देश की राजधानी श्रावस्ती में राजा जितशत्र राज्य करता था। वह परदेशी का अभिन्न मित्र था। दोनों में प्रगाढ़
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