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पुरुष की शक्ति : ७१
एक दिन बाबा भीष्म पितामह बच्चों की देख-रेख के लिए गुरुकुल में आ पहुँचे । सब राजकुमार "बाबा आए, बाबा आए, कहते हुए उनकी प्यार भरी गोद में जा बैठे। पितामह का सब को समान स्नेह मिला । कुशल-मंगल के बाद पितामह ने पूछा :
"क्यों आचार्य जी, सब बच्चे अच्छी तरह पढ़ते हैं न ?"
आचार्य जी-"हाँ, सब ही होनहार हैं। जितना पढ़ाता है. याद कर लेते हैं, पर युधिष्ठिर पढ़ने में मन नहीं लगाता। आज चौथा दिन है, इससे दो वाक्य भी याद नहीं हुए !"
पितामह ने युधिष्ठिर को सम्बोधित करते हुए कहा : "वत्स, आचार्य जी क्या कहते हैं ? तुम सबसे बड़े होकर भी ठीक से मन लगाकर नहीं पढ़ते हो। देखो, यह अवस्था तुम्हारे पढ़ने-लिखने की है। विद्या अच्छी तरह पढ़ोगे तो विद्वान बन जाओगे, सब लोग तुम्हारा आदर-सत्कार किया करेंगे। बेटा, संसार में विद्वान की बड़ी कद्र है। समझे, मन लगाकर पढ़ा करो।"
विनम्र भाव से युधिष्ठिर ने कहा : "बाबा जी ! आचार्य जी से पूछ लीजिए, मैंने पाठ का दूसरा हिस्सा 'क्रोध मत करो' तो कल सुना दिया है। पर, उसका पहला हिस्सा 'सदा सत्य बोलो' अभी याद नहीं हुआ। जब तक मैं अपनी वाणी पर विजय न पा लूं, तब तक कैसे कहूँ कि पूरा पाठ याद कर लिया?"
युधिष्ठिर की इस तथ्य भरी वाणी को सुनकर द्रोणाचार्य चौंक उठे। पितामह और आचार्य दोनों गद्-गद् हो गये। उन्हें
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