________________
७० : पीयूष घट __ "वत्स, युधिष्ठिर ! तुम चुप क्यों हो? क्या पाठ गद नहीं है ?"
युधिष्ठिर-हाँ गुरुदेव ! यही सत्य है, मुझे पाठ याद नहीं है।
आचार्य-हैं, क्या कहा, याद नहीं! बस, दो वाक्य और वे भी याद नहीं ?
युधिष्ठिर-हाँ गुरुदेव, याद नहीं है ? बहुत परिश्रम किया, पर नहीं हुए।
आचार्य-इनको कैसे याद हो गये ?
युधिष्ठर-गुरुदेव, इनकी ये जानें ! मुझे तो याद नहीं हुआ। __ आचार्य जी क्रोधित हो उठे। छड़ी हाथ में ली और युधिष्ठिर को मारने लगे।
तमाचे और छड़ी- दोनों का प्रयोग हुआ। मारते-मारते युधिष्ठिर का मुंह लाल कर दिया, पर युधिष्ठिर कुछ न बोला। सिर नीचा किए सब कुछ सहता रहा ! सुनता रहा !! उसके अन्य भाई इस छमा पर, सहिष्णुता पर दंग थे !
दुर्योधन सोच रहा था : "यदि इस प्रकार मेरे एक भी तमाचा लगा होता, तो गुरूजी को मजा चखा देता । बताता कि किसो को मारने का क्या परिणाम होता है। हम राजकुमार हैं, फिर हमें मारने वाला यहाँ कौन ?"
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org