________________
मंथन का मोती!
यह बात आजकल की नहीं, महा भारत-काल की है। द्रोणाचार्य के गुरुकुल में कौरव और पाण्डव अध्ययन के लिए आए थे। कोरवों में दुर्योधन बड़ा था और पाण्डवों में युधिष्ठिर । दुर्योधन बचपन से ही बड़ा अभिमानी एवं क्रोधी था और युधिष्ठिर विनम्र एवं शान्त । युधिष्ठिर, कौरव और पाण्डव दोनों को स्नेह-भरी दृष्टि से देखता था, किन्तु दुर्योधन में यह बात नहीं थी !
शिक्षा आरम्भ हुई। गुरुजी सब को एक-साथ पढ़ाने लगे। पहले दिन सबको वर्णमाला की शिक्षा दी। दूसरे दिन का पाठ था-"सदा सत्य बोलो, क्रोध मत करो।" गुरु ने पाठ दिया, शिष्य याद करने लगे। ___ यह लो, पाठशाला की छुट्टी हो गई। अन्य राजकुमार खेल-कूद में मस्त हैं। पर, युधिष्ठिर एक ओर बैठा अपना वही पाठ याद कर रहा है-"सदा सत्य बोलो, क्रोध मत करो", "सदा सत्य बोलो, क्रोध मत करो !” लो, सूर्य देव अस्ताचल पर आ पहुँचे हैं। गुरुकूल के छात्र और अध्यापक सब संध्या करने लगे हैं। युधिष्ठर भी उठा और स्नान करके संध्या करने लगा।
सारा संसार निद्रा के अन्धकार में डूब गया। आश्रम के रहने वाले अपनी-अपनी कुटियों में सोने चल दिये हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org