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७२ : पीयूष घट यह मालूम नहीं था कि युधिष्ठिर कितना विचारशील है। ज्ञानसिन्धु के ऊपर ही ऊपर तैरने वालों की संख्या बहुत है, परन्तु जिसको द्रोणाचार्य जी निबुद्धि समझने को भूल कर रहे थे, वही युधिष्ठिर इस संसार में विद्या से, आचरण से और तप से खूब ही चमका। उसका यह बुद्धि कौशल देखकर द्रोणाचार्य जी ने कहा था, "भविष्य में यह बालक मेरी समग्न आशाओं को पूरी करेगा। स्वयं चमकेगा और मेरा भी नाम चमका देगा।"
आज विद्यार्थियों में असंख्य दुर्योधन मिल सकते हैं पर, युधिष्ठिर कितने मिलेंगे ?
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