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६४ : पीयूष घट चारों ओर अंधेरा-हो-अंधेरा । राजा मन में सोचने लगा : "किस पागल के पाले पड़ गया हूँ !"
परन्तु, मम्मण ने ज्यों ही एक वस्तु पर से फटी गुदड़ी उठाई,. कि समूचा तलघर प्रकाश से भर गया।
सेठ ने कहा : ' यह है, महाराज मुझ गरीब का बैल !"
राजा ने ध्यान से देखा : "स्वर्ण का बैल है, जिसमें हीरेपन्ने और माणक्य-मोती जड़े हुए हैं।"
राजा के विस्मय का पार नहीं रहा। राजा विचारने लगा : "इतनी सम्पत्ति होते हुए भो इतना गरीब बना है, कि भयंकर काल-रात्रि में जाकर नदी के वेग से लकड़ियाँ इकट्ठी करता रहता है ?"
मम्मण सेठ राजा से कहने लगा : राजन् ! यह बैल ६६ करोड़ की लागत का है । मेरी अभिलाषा है, कि इस जोड़ी का दूसरा बैल भी ला सकें तो अपने आपको धन्य समझगा। इस बुढ़ापे में भी इतना श्रम इसीलिए करता हूँ।"
राजा श्रेणिक ने एक बार भगवान महावीर से प्रश्न किया: "भते ! मम्मण सेठ के पास इतना विपुल धन है, फिर भी सुखी क्यों नहीं ? न स्वयं खाता है, और न दान-पुण्य ही कर सकता है ?" __ भगवान ने कहा : “देवानुप्रिय ! धन दो प्रकार से प्राप्त होता है-पुण्यानुबन्धी पुन्य से, और पापानुबन्धी पुण्य से।"
जिस धन को पाकर मनुष्य के मन में शुभ-कार्य करने का संकल्प जागे, वह पहला, और जिस धन को पाकर मनुष्य
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