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६२ : पीयूष घट
चल पड़ते है । जिधर एक हाथ बढ़गया, उधर हजारों हाथ काम करने को बढ़ जाते हैं। श्रीकृष्ण की सेना ने और साथी जनों ने देखते ही देखते वूद्ध की सारी ईंटें अन्दर डाल दीं।
वृद्ध, श्रीकृष्ण की करुणा से प्रभावित था और श्रीकृष्ण उसकी सेवा करके आज अत्यधिक प्रसन्न थे।
-अन्तकृत अंग-सूत्र, वर्ग 3, अ०८/.
धनी बनो, धन-लोभी नहीं!
यह कहानी उस युग की है, जबकि राजा श्रेणिक राजगृह में राज्य करता था। राजा श्रेणिक तो प्रजावत्सल था ही, रानी चेलना भी कोमल स्वभाव की रानी थी। उसकी अनुभूति व्यापक और विशाल थी।
वर्षा का मौसम था । भादवे की काली अंधियारी रात, और मूसलाधार वर्षा हो रही थी। रानी चेलना जाग उठी, और महल के पिछले भाग की खिड़की में जा बैठी। आकाश में विद्य त जब तब चमकती रहती। विद्य त के प्रकाश में उसने देखा, वेगवती नदी में से कोई कुछ निकाल रहा है ! फिर जरा ध्यान से देखा, तो ज्ञात कर सकी, कि कोई पुरुष बहते पानी में से लकड़ी निकालनिकाल कर किनारे डाल रहा है । पुरुष की निर्धनता पर रानी चेतना को गहरी चिन्ता हो आई।
प्रभात बेला में राजन जागे तो रानी ने सबसे पहले रात बीती घटना कह सुनाई, और कहा : आपके राज्य में इतने दुःखी और दरिद्र मनुष्य भी रहते हैं, आश्चर्य है।"
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