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'५० : पीयूष घट
लोगों ने पहले उसे मारा भी, पीटा भी। फिर सेवा और 'पूजा भी की। दुग्ध और घृत की सेवा चण्ड सर्प को उल्टी दारुण हुई। चींटी आकर चिपटने लगीं। वेदना भयंकर होने लगी। फिर भी समता! शरीर से ममता जा रही थी, समता आ रही थी। जितना क्रोध था, उससे भी बढ़कर क्षमा और शान्ति और वह सर्प से देव बन गया।
नन्दी गा० ७६/.
शत्रु के लिए शस्त्र
एक बार कृष्ण, बलदेव, सत्यक और दारक चारों मिलकर वन विहार को गए। वहीं पर सूर्य अस्त हो जाने पर एक वटवृक्ष के नीचे चारों ठहर गए। सोचा : "विकट वन है, चारों श्रान्त हैं, नींद गहरी आएगी। किसी प्रकार का उपद्रव न हो, इसलिए एक-एक प्रहर तक प्रत्येक जागरण करे, और शेष सोते रहें।" सब सहमत हो गए।
दारुक ने कहा "पहला याम मेरा। आप सब आनन्द से सो जाएँ, मैं प्रहरी हूँ।"
एक पिशाच आकर बोला : “मैं भूखा है। बहुत दिनों से भोजन नहीं मिला। तेरे इन सोए हुए साथियों को मैं खा जाना चाहता हूँ।"
दारुक ने गर्जकर कहा : ‘मेरे बैठे, मेरे साथियों को खा जाना सुगम नहीं है।"
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