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पुरुष की शक्ति : ५१
दोनों में युद्ध होने लगा । दारुक का क्रोध जैसे-जैसे बढ़ता रहा, वैसे-वैसे पिशाच का बल भी बढ़ता रहा । दारुण थक चुका था । वह पिशाच को जीत नहीं सका ।
दूसरे प्रहर में सत्यक, और तीसरे याम में बलदेव भी उठा । और वे भी अपने साथियों की प्राण-रक्षा के लिए जी-जान से पिशाच के साथ लड़ते रहे । परन्तु पिशाच को एक भी हरा नहीं सका ।
चतुर्थ प्रहर में कृष्ण उठा । उसने अपने सामने एक पिशाच को खड़े देखा । पिशाच बोला : “तेरे साथियों को खाने आया हूँ । बहुत काल का भूखा हूँ । आज विधि वशात् यथेच्छ भोजन मिल गया है ।"
कृष्ण ने निर्भय होकर कहा " परन्तु मुझे जीते बिना तेरी इच्छा पूरी न होगी ।"
कृष्ण बड़ा चतुर था। वह पिशाच और मनुष्य के बल से भली-भाँति परिचित था । पिशाच युद्ध करने लगा । कृष्ण शान्त भाव से खड़ा कहता रहा : "शाबाश ! तू बड़ा बलवान् है, तू योद्धा है ! तू मल्ल है ! तू बहादुर है !!"
पिशाच का बल क्षीण होने लगा । उसने अनुभव किया, जैसे कोई उसके उसके बल को छीन रहा हो। वह लड़ता- लड़ता थक गया और भूमि पर गिर पड़ा ।
प्रभात वेला में दारुक, सत्यक और बलदेव तीनों उठे, कृष्ण ने देखा; सब के सब घायल हो रहे थे !
पूछा: "क्या बात है ?"
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