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पुरुष की शक्ति : ५६ वाला है और वह विनाश यादव कुमारों द्वारा प्रताड़ित द्व पायन ऋषि के कोप से होगा।"
बुद्धिमान अपना अपमान सह लेता है, परन्तु अपने ही सामने अपनी कृति की वह अवगणना नहीं देख सकता । श्रीकृष्ण ने अतिस्वर से पूछाः
"क्या मैं भिक्ष बन सकूगा, भंते !" "नहीं, कृष्ण ! "भंते ! ऐसा क्यों नहीं होगा ?"
भगवान ने धीर स्वर से कहा : "आज तक के मानव इतिहास में किसी भी वासुदेव ने प्रव्रज्या नहीं ली, ले भी नहीं सकता, और ले भी नहीं सकेगा। यह संसार का शाश्वत नियम है-कृष्ण !"
मनुष्य के मन में अपने भविष्य की गहरी चिन्ता छिपी रहती है । श्रीकृष्ण ने विनम्र-भाव से फिर पूछा :
"भंते ! यहाँ से जीवन का अन्त हो जाने पर मैं कहाँ और किस रूप में रह सकूगा ?" ___ "कृष्ण ! यह सुन्दर द्वारिका जल रही होगी, यहाँ के सुरा और सुन्दरी में भान भूले लोग अग्निकुमार की आग में भस्म हो रहे होंगे, तब तुम, बलभद्र और तुम्हारे माता-पिता द्वारिका से निकलकर पाण्डव-मथुरा की ओर जाते-जाते मार्ग में वसुदेव
और देवकी के जीवन का अन्त हो जाने पर, कोशाम्बी वन में वृक्ष के नीचे पृथ्वी-शिला पर लेटे हुए तुम्हारे पैर में जराकुमार बाण मारेगा, जिससे तुम्हारे जीवन का अन्त हो जायगा और तुम वहाँ से तीसरी पृथ्वी में जीवन धारण करोगे। बलभद्र, जो
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