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३६ : पीयूष घट गया। जीवन के सुख-भोगों में कोणिक मत्त हो गया। भोग. विलास, वैभव-इन तीनों में वह ग्रस्त था !
कोणिक की राज्य-लिप्सा जाग उठी। उसने पिता से कहा : "तुम वृद्ध हो गए हो। फिर भी, अभी तक राज्य लोभ नहीं छूटा है। मैं कब राज्य करँगा? मेरा यौवन तीव्र गति से बोता जा रहा है।" उसने अपने कालीकुमार प्रभति दस भाइयों को अपने अनुकूल बनाकर विद्रोह कर दिया, और राज्य सिंहासन पर अधिकार कर लिया। पिता श्रेणिक को जेल के सींखचों में बन्द कर दिया। किसी को भी मिलने की अनुमति नहीं थी। अपनी माता चेलना के अत्यन्त अनुरोध पर दिन में केवल एक बार मिलने की अनुमति न जाने उसने कैसे दे दी थी।
मनुष्य कितना भी कठोर क्यों न हो, वह सब कुछ भूल सकता है। परन्तु अपनी जन्म देने वाली माता को नहीं भूल सकता, एक बार कोणिक के मन में माता के प्रति श्रद्धा उत्पन्न हुई। वह वन्दन करने आया। माता चेलना उदास बैठी थी, कोणिक ने पूछा : ___"अम्ब आज इतना उदास क्यों ? तुम्हारा पुत्र कोणिक आज मगध और अंग देश का सम्राट है, अधिपति है। प्रसन्नता के बदले यह खिन्नता क्यों ?" ___ "जिस पुत्र ने अपने पिता को बन्दी बना कर जेल में डाल दिया है, क्या वह माता के साथ वैसा व्यवहार नहीं कर सकता?" चेलना ने भर्त्सना के स्वर में कहा।
चेलना ने फिर अपने दबे उद्गारों को व्यक्त करते हुए कहा : "कोणिक, तू नहीं जानता कि तेरे पिता तुझसे कितना प्यार करते. थे।" अन्तर दुःख के उद्वग के साथ चेलना ने कोणिक को गर्भ
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