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देव हारा, मानव जीता!
पुराने युग को यह बात है। उस पुराने युग की,। जहाँ इतिहासकार अभी नहीं पहुंचा है। श्रद्धा के नेत्रों से ही जिस युग के प्रकाश को चमक को हम देख सके हैं, आज तक ! __ वह युग, भगवती मल्ली का युग था। चम्पा नगरी थी, जिसमें धन-श्रेष्ठी रहता था। वह श्रावक था, सत्यासत्य को जानता था । कर्त्तव्य-अकर्त्तव्य को समझता था। जैसा योग्य वह पिता था, वैसा ही दक्ष उसे पुत्र मिला था। नाम था, उसका अर्हन्नक । वह नीति में, रीति में और धर्म में दक्ष था । व्यापार करने में वह कुशल था। और समुद्री व्यापार में भी यशस्वी हो गया था।
एक बार अन्त्रिक समुद्री यात्रा कर रहा था । उसका जल-पोत सागर की तरुण तरंगों पर थिरकता चला जा रहा था। सहसा तूफान आ गया। जहाज हिलने-डुलने लगा।
स्वर्ग की देव-सभा में इन्द्र ने अपने मुख से अर्हन्नक के धर्ममय जीवन की प्रशंसा की। एक मिथ्यात्वी देव, प्रशंसा को सहन न कर परीक्षा लेने को चला आया। वह पिशाच का भयंकर रूप बनाकर जहाज में आ गया था-यह तूफान उसी का था। ___ अर्हनक निर्भय होकर जहाज में बैठा रहा। मन में दृढ़ संकल्प किया :
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