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पुरुष की शक्ति : ४७
"यदि उपसर्ग से बच गया, तो भक्त-पान ग्रहण करूंगा, नहीं तो मेरे चारों आहारों का परित्याग है ।" वह अभय होकर मन ही मन भगवान की स्तुति करने लगा। अभय को भय कहाँ ? वह स्थिर और दृढ़ था। देव अपने प्रयत्न में निष्फल हो गया। देव ने कहा : ___ "तुझे यथेच्छ धन दूंगा, परन्तु एक बार अपने धर्म को तू छोड़ दे, उसे मिथ्या और असत्य कह दे।" देव ने लोभ को भाषा में कहा । परन्तु अर्हन्नक ने विश्वास के साथ उत्तर दिया : ____ "कभी नहीं, कभी नहीं ! आप, भले ही मुझे मार डालें ! परन्त मैं अपने धर्म को कभी असत्य या मिथ्या नहीं कह सकता हूँ। धर्म तो मुझे प्राणों से भी अधिक प्रियतर है। धन क्षणिक है, धर्म शाश्वत है।" अर्हन्नक के स्वर में दृढ़ता थी।
अन्त में देव हार गया, मानव जीत गया। अर्हन्नक को भय और लोभ-दोनों नहीं जीत सके । देव प्रसन्न होकर बोला : ___ "मुझे क्षमा करो, अर्हन्नक ! मैंने तुम्हें बड़ा कष्ट दिया । लो, यह कुण्डल की जोड़ी-मैं तुम्हें उपहार देता हूँ।" ___ अर्हन्नक के इन्कार करने पर भी देव नित्य कुण्डल युगल देकर चला गया था। अर्हन्नक मिथिला में आया, और उसने राजा कुम्भ की राजकुमारी मल्ली के लिए वह उपहार सविनय समर्पित कर दिया। वहाँ बहुत दिनों तक रहकर फिर वह अपने देश को लौटा । साथ में प्रभूत धन संचय करके ले आया था।
अब उसने अपने जीवन की दिशा को बदला। धर्म की आराधना, साधना में विशेष रस लेने लगा। व्रत, नियम ओर धर्म का पालन करके अर्हन्नक देव-लोक में गया।
ज्ञाता अ०८/.
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