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आसक्ति का जाल !
राजा कोणिक द्वारा शासित चम्पा नगरी में माकन्दी सार्थ - वाह रहता था । भद्रा, उसकी सहचरी थो। जिनपालित और जिनरक्षित दो योग्य पुत्र थे । वे चतुर, साहसी और विनीत थे । अनेकों बार उन्होंने व्यापार के लिए लवण सागर की लम्बी यात्रा की ।
पिता ने कई बार कहा : " अब अपने को धन की जरूरत नहीं है । पर्याप्त धन तुम कमा चुके हो । अतः खतरे से भरी-पूरी लवण सागर की यात्रा तुम बन्द कर दो !” परन्तु वे नहीं माने, यात्रा पर चल पड़े । जदान के नये खून में जो जोश होता है, वह उसे शान्ति से बैठने नहीं देता । धन की आसक्ति मनुष्य को मृत्यु के मुख में जाने को भी तैयार कर देती है ।
लवण सागर की विशाल छाती पर उनका जहाज चला जा रहा था । सागर में सहसा तूफान आ गया। जहाज प्रबल पवन के वेग को न सह सका । एक तख्ते के सहारे से वे रत्नद्वीप जा लगे । वहाँ रत्नद्वीप की एक देवी रहती थी । उसे क्यों ही जिनपालित और जिनरक्षित के आने की सूचना मिली, त्यों ही वह उनके पास आई | अपने सुन्दर प्रासाद में उन्हें ले गई और कहाः
"तुम यहाँ रहो और मेरे साथ पत्नी जैसा व्यवहार करो। मैं आज से तुम्हें अपना पति स्वीकार करती हूँ । यदि तुमने मेरी बात स्वीकार नहीं की, तो तुम्हारा सिर होगा और मेरी खून की
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